पटना 02 जून 2025 (भारत बानी ब्यूरो ). बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण हमेशा से महत्वपूर्ण रहे हैं. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की आहट के बीच उन नेताओं की किस्मत भी चमकने लगी है. नीतीश कुमार की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने हाल ही में सवर्ण आयोग का गठन किया है, जिसके अध्यक्ष बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व एमएलसी महाचंद्र प्रसाद सिंह को बनाया गया है. यह कदम सवर्ण वोटरों को साधने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, क्योंकि बिहार में सवर्ण समुदाय (लगभग 15.52% आबादी) एक महत्वपूर्ण वोट बैंक है. महाचंद्र प्रसाद सिंह भूमिहार जाति से आते हैं. लेकिन इस बीच कई सवर्ण नेता जो बीते सालों में हाशिए पर चले गए थे, अब चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक पार्टियों की नजरों में चढ़ने लगे हैं.

पिछले कुछ वर्षों में बिहार की राजनीति में सवर्ण नेताओं की उपेक्षा की शिकायतें सामने आती रही हैं. बीजेपी और जेडीयू जैसे दलों पर आरोप लगते रहे हैं कि वे ओबीसी, ईबीसी और दलित वोटरों को साधने में ज्यादा ध्यान देते हैं, जिसके चलते सवर्ण नेताओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला. उदाहरण के तौर पर, बीजेपी के पूर्व सांसद उदय सिंह (पप्पू सिंह) को देखा जा सकता है, जो पूर्णिया से सांसद रह चुके हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी अनदेखी के बाद वे प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी में शामिल हो गए, जो सवर्णों सहित हाशिए पर पड़े नेताओं को अपनी ओर खींच रही है. इसी तरह, बीजेपी के चंद्रशेखर सिंह बबन, जो अररिया में जिला अध्यक्ष रह चुके थे, भी उपेक्षा के कारण जन सुराज में चले गए.

इन सवर्ण नेताओं की चमक सकती है किस्मत?

महाचंद्र प्रसाद सिंह का मामला भी ऐसा ही है. तिरहुत क्षेत्र से आने वाले महाचंद्र, जो 36 वर्षों तक सारण स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से एमएलसी रहे, लंबे समय से महत्वपूर्ण जिम्मेदारी से वंचित थे. उनकी सवर्ण आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्ति को सवर्ण समुदाय के बीच सकारात्मक संदेश देने की कोशिश माना जा रहा है. इसके अलावा, बीजेपी के कुछ अन्य सवर्ण नेताओं जैसे रमा देवी और राजीव प्रताप रूडी को भी हाल के वर्षों में संगठन में वह तवज्जो नहीं मिली, जिसकी वे अपेक्षा करते थे. रमा देवी, जो सांसद रही हैं, को 2024 में टिकट नहीं मिला, जिससे सवर्ण वोटरों में नाराजगी देखी गई.

कांग्रेस में किसकी चमकेगी किस्मत?

कांग्रेस भी सवर्ण नेताओं को फिर से सक्रिय करने में जुटी है. बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह, जो स्वयं भूमिहार समुदाय से हैं, ने संगठन में सवर्ण नेताओं को बढ़ावा दिया है. कन्हैया कुमार, एक अन्य सवर्ण (भूमिहार) नेता, को भी कांग्रेस ने बिहार में प्रचार का चेहरा बनाया है. उनकी जेएनयू से निकली छवि और ओजस्वी भाषण शैली सवर्ण युवाओं को आकर्षित कर रही है.

किस पार्टी में सवर्ण नेताओं का है बोलबाला

नीतीश सरकार का सवर्ण आयोग गठन का फैसला 2011 के बाद दोबारा सक्रिय करने की कोशिश है, जब यह आयोग निष्क्रिय हो गया था. महाचंद्र प्रसाद सिंह ने कहा कि यह आयोग गरीब सवर्णों की आवाज उठाएगा, जो सामाजिक और आर्थिक रूप से उपेक्षित महसूस करते हैं. लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम महज चुनावी रणनीति है, क्योंकि सवर्ण वोटर बीजेपी और जेडीयू के लिए महत्वपूर्ण हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां महागठबंधन का प्रभाव है.

चिराग पासवान अपने पार्टी में भी सर्वण नेताओं को विशेष तवज्जो दे रहे हैं. जहानाबाद के पूर्व सांसद अरुण सिंह और राजन तिवारी जैसे नेताओं के बाद अब कुछ और सवर्ण नेताओं की एंट्री होने वाली है. इसी तरह आरजेडी में आरा के सांसद सुधाकर सिंह के बाद अब कुछ और भूमिहार सवर्ण नेता की एंट्री हो सकती है. सूत्र बता रहे हैं कि जेडीयू के एक कद्दावर विधायक तेजस्वी के संपर्क में है. कुलमिलाकर बिहार चुनाव आते ही सवर्ण नेताओं की पूछ बढ़ने वाली है.

सारांश:
बिहार की राजनीति में लंबे समय से हाशिये पर चल रहे सवर्ण नेता अब एक बार फिर चुनावी माहौल में सक्रिय होते दिख रहे हैं। चुनाव आते ही इन नेताओं की राजनीतिक किस्मत बदलने की उम्मीद है, क्योंकि विभिन्न पार्टियां सवर्ण वोट बैंक को साधने में जुट गई हैं।

Bharat Baani Bureau

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