11 जून 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) के बाद पाकिस्तान और अमेरिका के संबंधों में महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं, जो दोनों देशों की रणनीतिक प्राथमिकताओं, क्षेत्रीय समीकरणों और आंतरिक राजनीति से प्रभावित हैं. ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान और अमेरिका के संबंधों की दिशा बदलती हुई दिख रही है. इसी कड़ी में खबर ये है कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल सैयद असीम मुनीर अहमद शाह 14 जून को अमेरिकी सेना दिवस के अवसर पर वॉशिंगटन डीसी की यात्रा पर जा रहे हैं. यह कार्यक्रम अमेरिकी सेना की 250वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित किया जा रहा है.

वॉशिंगटन में मौजूद पाकिस्तानी राजदूतावास के सूत्रों के मुताबिक 12 जून को मुनीर अमेरिका पहुंच सकते हैं और दुनिया भर के सैन्य नेताओं के साथ समारोह में शामिल होंगे. इस यात्रा के दौरान, अमेरिका पाकिस्तान से भारत और अफगानिस्तान पर हमला करने वाले आतंकवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई करने की अपील कर सकता है. हालांकि इसे लेकर अभी कोई जानकारी नहीं मिली है लेकिन इसे अमेरिका-चीन के रिश्तों और पाकिस्तान की रणनीतिक स्थिति के संदर्भ में देखा जा रहा है.

बुलावे के पीछे क्या हो सकती है वजह?

आसिम मुनीर को वॉशिंगटन बुलाने के पीछे भारत-पाकिस्तान द्विपक्षीय बातचीत से समस्याओं का समाधान करने की पहल हो सकती है. पाकिस्तान, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) जैसे प्रोजेक्ट्स के ज़रिए चीन के काफी करीब है. ऐसे में अमेरिका को पाकिस्तान के न्यूट्रल स्टेटस को लेकर भी संदेह बना हुआ है. अमेरिका को चीन के साथ पाकिस्तान के गहराते रिश्ते बिल्कुल रास नहीं आ रहे, यही वजह है कि वो बार-बार पाकिस्तान को तवज्जो देकर उसे अपने साथ करना चाहता है. वो बात अलग है कि पाकिस्तान की स्थिति इस पर साफ नहीं है कि क्योंकि उस पर चीन का प्रभाव कहीं से अनदेखा नहीं है. वहीं पाकिस्तान की बात करें तो वो चाहेगा कि अमेरिका कश्मीर मामले में उसकी मध्यस्थता करे.

चीन से पाकिस्तान की नज़दीकी

1960 के दशक से चीन-पाकिस्तान के सैन्य संबंध मजबूत हैं. चीन ने पाकिस्तान को मिसाइल, लड़ाकू विमान, और रक्षा उपकरणों की आपूर्ति की है. चीन ने पाकिस्तान के CPEC में $60 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया हुआ है, ऐसे में वो पाकिस्तान का सबसे बड़ा सहयोगी बना हुआ है. अमेरिका हथियारों के मामले में भी पाकिस्तान को अपना बड़ा खरीददार बनाना चाहता है क्योंकि भारत अपने हथियार खुद विकसित करने पर ध्यान दे रहा है. वो इसके लिए सस्ते और बेहतर विकल्पों की ओर देख रहा है और उसे लुभाने के लिए रूस अपनी तकनीक साझा करने का ऑफर भी भारत को देता है.

ऑपरेशन सिंदूर के बाद बदली परिस्थितियां

भारत-अमेरिका और पाकिस्तान के बीच के रिश्ते ऑपरेशन सिंदूर के पहले तक इतने साफ नहीं थे. पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियों को लेकर भारत कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बात कर चुका है और अमेरिका भी इसे अच्छी तरह से जानता है. बावजूद इसके भारत के ऑपरेशन सिंदूर पर उसका साथ देने के बजाय डोनाल्ड ट्रंप गोलमोल बातें करते रहे. दोनों देशों के सैन्य तनाव को खत्म करने का श्रेय को उन्होंने खुद ही ले लिया, उसके बाद से पाकिस्तान से उनकी नज़दीकियां बढ़ने लगीं. सार्वजनिक मंचों से शहबाज शरीफ डोनाल्ड ट्रंप की खुलकर तारीफ करते नज़र आते रहे, तो डोनाल्ड ट्रंप ने सुरक्षा के लिहाज से ट्रैवेल बैन वाले देशों की लिस्ट से पाकिस्तान को बाहर ही रखा. पाकिस्तानी डेलिगेशन भी वॉशिंगटन पहुंचा और भारत से बातचीत को लेकर ट्रंप से सिफारिश की. अब आसिम मुनीर का वॉशिंगटन में बुलावा एक बार फिर साबित करता है कि अमेरिका एशिया में ताकत के संतुलन और भारत के प्रभाव को सीमित करने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है.

पाकिस्तान का साथ देगा अमेरिका?

अगर हम अमेरिका का साल 2000 से पहले की पॉलिसी देखें तो वो दोनों ही देशों के पावर बैलेंसिंग पर काम करता था. उसकी नीतियां न तो सीधे भारत के पक्ष में थीं और न ही पाकिस्तान के. अमेरिका ने पाकिस्तान को एड के नाम पर खूब पैसा भी बांटा, लेकिन माहौल तब बदल गया, जब पाकिस्तान में घुसकर अमेरिका को 9/11 के गुनहगार ओसामा बिन लादेन को मौत के घाट उतारना पड़ा. पाकिस्तान की ज़मीन पर पहली बार आतंकवादियों की खातिरदारी का सबूत पूरी दुनिया ने देखा. इसके बाद अमेरिका ने न सिर्फ पाकिस्तान को पैसे देने बंद किए, बल्कि उसका नज़रिया भी आतंकी देश के लिए बदल गया. वो बात अलग है कि समय के साथ-साथ अमेरिका एक बार फिर से अपनी नीति को बदल रहा है और पाकिस्तान को लेकर डोनाल्ड ट्रंप का रुख अलग ही दिख रहा है.

रूस-चीन-भारत मिले, तो क्या होगा?

अमेरिका का एक डर ये भी है कि अगर कहीं रूस-भारत-चीन यानि RIC एक्टिवेट हो गया, तो कहीं उसका प्रभाव एशियाई देशों से कम न हो जाए. रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने पर्म में बोलते हुए इसे लेकर संकेत भी दिए थे. लावरोव ने कहा कि भारत सिर्फ आर्थिक सहयोग के लिए क्वाड में शामिल हुआ है, न कि सैन्य गतिविधियों के लिए. उन्होंने कहा कि नेवल एक्सरसाइज और संयुक्त युद्धाभ्यास इस दिशा में बढ़ते कदम हैं और भारतीय मित्र इस उकसावे को अच्छी तरह से समझते हैं. रूस RIC को पश्चिमी देशों के खिलाफ एकीकृत ताकत मानता है, जो कभी एक शक्तिशाली जियो पॉलिटिकल प्लेटफॉर्म था. अगर चीन और भारत के बीच तनाव कम हों, तो ये मंच फिर से अमेरिका के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है. वैसे भी चीन ने अमेरिका के सैंक्शन को लेकर जिस तरह उसे झुकने पर मजबूर कर दिया, वो कहीं न कहीं अमेरिका की सुपरमेसी को चैलेंज करता है.

भारत पर क्या होगा इसका असर?

भारत जिस तरह से लगातार विकास और आधुनिकता की दौड़ में आगे बढ़ रहा है, वो एक अलग पहचान रखता है. आज हम चौथी बड़ी इकोनॉमी और मिलिट्री पावर हैं. न्यूक्लियर पावर को छोड़ दें तो भारत और पाकिस्तान में तुलना करने लायक भी कुछ नहीं है. अमेरिका में अपनी लॉबिंग करने में लगा पाकिस्तान खुद को मुस्लिम वर्ल्ड का प्लेयर बताता है. हालांकि ये बात भी सही है कि जो मुस्लिम देश विकास को तरजीह देते हैं, वहां पाकिस्तान की वैसी साख भी नहीं बची है. भारत टेक्नोलॉजी से लेकर वॉरफेयर तक में मॉडर्नाइज़ेशन में लगा है, जबकि पाकिस्तान आज भी भीख मांगकर हथियार खरीद रहा है. इस लिहाज से पाकिस्तान कितनी भी कोशिश करे, खुले तौर पर अमेरिका उसके साथ नहीं आ सकता.

सारांश:
भारत-पाक के बीच 31 दिन तक चली तनातनी के बाद अमेरिका ने पाकिस्तान के आर्मी चीफ को आधिकारिक न्यौता भेजा है, जिससे वैश्विक राजनीति में हलचल तेज हो गई है। यह दौरा ऐसे समय में तय हुआ है जब डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति पर कई सवाल उठ रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप पाकिस्तान को अपने पक्ष में लाने की रणनीति बना रहे हैं, जिससे क्षेत्रीय संतुलन पर असर पड़ सकता है। भारत की ओर से इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन कूटनीतिक निगाहों से यह मुलाकात काफी अहम मानी जा रही है।

Bharat Baani Bureau

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