dalai lama

03 जुलाई 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने पुष्टि की है कि उनके उत्तराधिकारी का चयन होगा। इसी के साथ यह तय हो गया है कि सैकड़ों वर्षों से चली आ रही तिब्बती बौद्धों की सर्वोच्च धर्मगुरु को चुनने की परंपरा आगे भी जारी रहेगी और भविष्य में नए दलाई लामा के नाम का एलान होगा। परंपरागत रूप से दलाई लामा का चयन वर्तमान लामा की मृत्यु के बाद पुनर्जन्म के सिद्धांत के आधार पर होता है। मौजूदा दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो उर्फ ल्हामा थोंडुप ने बुधवार को इससे जुड़ी जानकारी देते हुए कहा कि उनके उत्तराधिकारी का फैसला उनका ट्रस्ट- गादेन फोडरंग करेगा। इसमें और किसी का दखल नहीं होगा।

दलाई लामा के इस बयान के सामने आने के बाद से ही चीन से लेकर भारत और अमेरिका तक हलचल मच गई है। यह बयान देकर दलाई लामा ने इस अनिश्चितता को समाप्त कर दिया कि उनके बाद उनका कोई उत्तराधिकारी होगा या नहीं। हालांकि, अपने बयान से दलाई लामा ने चीन के साथ नए सिरे से टकराव की स्थिति पैदा कर दी है। दरअसल, उनका कहना है कि उनका उत्तराधिकारी चीन के बाहर पैदा होगा और अगर बीजिंग में उनके उत्तराधिकारी के चयन की कोशिश की जाती है तो उस व्यक्ति को अस्वीकार किया जाए। 

दलाई लामा के उत्तराधिकारी को चुने जाने का इतिहास क्या है? मौजूदा दलाई लामा को कैसे चुना गया था? अब अगले दलाई लामा को चुने जाने की प्रक्रिया क्या हो सकती है? इसमें चीन की क्या आपत्तियां हैं? भारत और अमेरिका की अगले दलाई लामा को चुनने में क्या भूमिका हो सकती है? आइये जानते हैं…

पहले जानें- क्या है दलाई लामा का पूरा इतिहास?

तिब्बत में दलाई लामा की यह सत्ता 1951 तक जारी रही। हालांकि, बाद में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया और 14वें दलाई लामा भारत आ गए।

दलाई लामा, तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय के सर्वोच्च नेता, करुणा के बोधिसत्त्व अवलोकितेश्वर के अवतार माने जाते हैं। 

यह उपाधि पहली बार 1578 में मंगोल शासक अल्तान खान की तरफ से सोनम ग्यात्सो को दी गई थी। वे तीसरे दलाई लामा के तौर पर जाने गए।

इस लिहाज से तिब्बती बौद्धों के पिछले दो धर्मगुरु- गेंदुन द्रब को पहले दलाई लामा और गेदुन ग्यात्सो को दूसरे दलाई लामा के तौर पर स्वीकार किया जाता है।

तिब्बती बौद्धों के बीच दलाई लामा सर्वोच्च आध्यात्मिक शक्ति माने जाते हैं। उन्हें तिब्बती पहचान का परिचायक माना जाता है।

तिब्बती बौद्धों का मानना है कि हर दलाई लामा में अपने पूर्ववर्ती की आत्मा होती है, वे प्रबुद्धों पूर्वजों का ही पुनर्जन्म होते हैं।  

17वीं शताब्दी में पांचवें दलाई लामा ने गदेन फोडरांग सरकार के माध्यम से तिब्बत में आध्यात्मिक और राजनीतिक सत्ता स्थापित की। 

अब जानें- क्या है दलाई लामा का उत्तराधिकारी के चयन की प्रक्रिया?

  • तिब्बती बौद्ध परंपरा में दलाई लामा का चयन पुनर्जन्म के सिद्धांत पर आधारित है। मान्यताओं के अनुसार, वर्तमान दलाई लामा के देहांत के बाद उनकी आत्मा एक नवजात शिशु में पुनर्जन्म लेती है।
  • पिछले दलाई लामा के निधन के बाद एक शोक का समय होता है। इसके बाद अगले दलाई लामा की खोज वरिष्ठ लामाओं द्वारा संकेतों, सपनों, और भविष्यवाणियों के माध्यम से होती है।
  • दलाई लामा के अंतिम संस्कार के दौरान उनकी चिता से निकलने वाले धुएं की दिशा, मृत्यु के समय वे जिस दिशा में देख रहे थे वो स्थिति भी अगले दलाई लामा की खोज में मददगार होती है।

इस प्रक्रिया में कई बार वर्षों लग जाते हैं। एक से ज्यादा बच्चों में भी मौजूदा लामा के बताए हुए लक्षण दिख सकते हैं। हालांकि, संभावित बच्चे के मिलने के बाद उसकी पुनर्जन्म के तौर पर पहचान करने के लिए उसे पूर्ववर्ती दलाई लामा की वस्तुओं, जैसे माला या छड़ी को पहचानने की परीक्षा ली जाती है। अगर संभावित बच्चा इसमें सफल रहता है तो उसे बौद्ध धर्म, तिब्बती संस्कृति, और दर्शन की गहन शिक्षा दी जाती है।

अब तक जितने भी दलाई लामा हुए, उनमें से सिर्फ एक का जन्म मंगोलिया में हुआ और एक का जन्म पूर्वोत्तर भारत में हुआ था। इसके अलावा बाकी दलाई लामा को तिब्बत में ही ढूंढा गया था। 

मौजूदा दलाई लामा को कब-कैसे चुना गया?
दलाई लामा की वेबसाइट के अनुसार 6 जुलाई, 1935 को वर्तमान किंघई प्रांत के एक किसान परिवार में लामो धोंडुप के रूप में जन्मे 14वें दलाई लामा की पहचान ऐसे ही एक पुनर्जन्म के रूप में तब हुई थी, जब उनकी उम्र महज दो साल थी। बताया जाता है कि तब भी अलग-अलग संकेतों के आधार पर तिब्बती सरकार ने कई टीमों को दलाई लामा के उत्तराधिकारी की खोज में भेजा था। करीब चार साल की खोज के बाद जब इन्हीं में से एक दल को लामो धोंडुप के दलाई लामा के उत्तराधिकारी होने के संकेत मिले तो उनकी परीक्षा ली गई। उनके सामने 13वें दलाई लामा की चीजें रखीं तो उन्होंने कहा- ये मेरी हैं, ये मेरी हैं। इसके बाद 1940 में ल्हामो धोंडुप को ल्हासा के पोटाला पैलेस ले जाया गया और तिब्बत के लोगों के धर्मगुरु के तौर पर मान्यता दी गई। 

इस बार कैसे अलग हो सकती है दलाई लामा के चयन की प्रक्रिया?
14वें दलाई लामा ने संकेत दिया है कि पारंपरिक पुनर्जन्म के अलावा ‘उद्भव’ (emanation) भी उत्तराधिकार का एक वैकल्पिक तरीका हो सकता है। अमर उजाला में गुरुवार को वरिष्ठ पत्रकार और लेखक जयसिंह रावत के लेख में बताया गया है कि मौजूदा दलाई लामा का सीधा संकेत है कि इस बार उत्तराधिकारी का चयन उनके जीवनकाल में भी हो सकता है। इसके जरिए चीन के हस्तक्षेप को नाकाम किया जा सकता है, जो कि अपने अनुसार दलाई लामा को चुनना चाहता है। 

दलाई लामा का यह भी कहना है कि  उनका उत्तराधिकारी ‘स्वतंत्र दुनिया’ में जन्म लेगा, संभवतः भारत, उत्तराखंड, हिमाचल, या लद्दाख जैसे क्षेत्रों में, न कि चीन के नियंत्रण वाले क्षेत्र में। यह प्रक्रिया गदेन फोडरांग ट्रस्ट की ओर से संचालित होगी, जो 2015 में स्थापित किया गया था और तिब्बती बौद्ध परंपराओं के प्रमुखों के परामर्श से कार्य करेगा। दलाई लामा ने यह भी संकेत दिया है कि उनका उत्तराधिकारी कोई बच्ची भी हो सकती है।

दलाई लामा पर चीन का क्या रुख रहा है?
चीन के विदेश मंत्रालय का कहना है कि दलाई लामा के पुनर्जन्म को मान्यता देने का अधिकार उसके पास है। चीनी अधिकारियों ने इस पर जोर दिया है कि दलाई लामा के चयन में घरेलू प्रक्रियाओं का पालन जरूरी है। चीन इस पूरे मुद्दे को राष्ट्रीय स्वायत्तता और धार्मिक नियमों से जुड़ा मानता है। 2007 में उसने इससे जुड़ा एक कानून भी बनाया था, जिसके तहत तिब्बत के सर्वोच्च धर्मगुरुओं को चीन की तरफ से मान्यता होनी चाहिए और उन्हें चीनी कानून, धार्मिक परंपराओं और ऐतिहासिक मिसालों को मानना चाहिए।

दलाई लामा के चयन के लिए चीन का क्या है प्रस्ताव?
चीनी अधिकारी बार-बार यह कहते रहे हैं कि अगला दलाई लामा चीन में ही जन्म लेगा और किसी और देश में जन्मे या निर्वासित सरकार द्वारा नियुक्त उत्तराधिकारी मान्य नहीं होगा। चीन अपनी ‘गोल्डन अर्न’ (सोने के कलश) सिस्टम के जरिए दलाई लामा के चयन का प्रस्ताव देता आया है।

चीन का दावा है कि उसे 1793 के किंग राजवंश की ‘गोल्डन अर्न’ प्रक्रिया के तहत दलाई लामा के उत्तराधिकारी को मंजूरी देने का अधिकार है। इस प्रक्रिया के तहत दलाई लामा के उत्तराधिकारी की खोज के बाद उनके नामों को सोने के एक कलश में डाला जाता है। इसके बाद जिस भी बच्चे का नाम इस कलश से चुना जाता है, वही दलाई लामा होगा। हालांकि, दलाई लामा और तिब्बती समुदाय इसे धार्मिक स्वायत्तता पर हमला मानते हैं। 14वें दलाई लामा ने अपनी किताब, जो कि इसी साल मार्च में रिलीज हुई है, में तिब्बतियों से अपील की गई है कि वे राजनीतिक हितों के लिए चयनित दलाई लामा को स्वीकार न करें। अगर उसे चीन ने चयनित किया हो तो भी।

क्या तिब्बती धर्मगुरु के चयन की प्रक्रिया में चीन ने पहले दखल दिया है?
दलाई लामा का उत्तराधिकार केवल धार्मिक नहीं, बल्कि वैश्विक भू-राजनीति का एक महत्वपूर्ण मुद्दा है। 1951 में तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद से, बीजिंग ने तिब्बती बौद्ध धर्म को नियंत्रित करने का प्रयास किया है। 1995 में, जब दलाई लामा ने गेधुन चोएक्यी न्यिमा को 11वें पंचेन लामा (तिब्बती बौद्धों के दूसरे सर्वोच्च धर्मगुरु) के रूप में मान्यता दी, तो चीन ने उस बच्चे को हिरासत में ले लिया, जिसका ठिकाना आज तक अज्ञात है। इसके बजाय, चीन ने अपने चुने हुए पंचेन लामा को स्थापित किया, जिसे तिब्बती समुदाय ने अस्वीकार कर दिया।

भारत और अमेरिका के लिए क्यों अहम है दलाई लामा के उत्तराधिकारी का मुद्दा?

1. भारत के लिए
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक माओत्से तुंग की कमान में चीनी सेना लंबे समय तक तिब्बत पर कब्जे की कोशिश में जुटी रही। इसके खिलाफ जब दलाई लामा के नेतृत्व में तिब्बती बौद्धों ने आवाज उठाई तो चीनी सेना ने इसे बर्बरता से कुचल दिया। इसके बाद 1959 में चीन के तिब्बत पर कब्जा करने के बाद दलाई लामा तिब्बतियों के एक बड़े समूह के साथ भारत आ गए और यहां से ही तिब्बत की निर्वासित सरकार का संचालन करने लगे। 

तिब्बत में इस घटना ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। तब से दलाई लामा ने हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला को अपना घर बना लिया, जिससे बीजिंग नाराज हो गया और वहां उनकी उपस्थिति चीन और भारत के बीच विवाद का विषय बनी रही। भारत में इस वक्त करीब 1 लाख से ज्यादा तिब्बती बौद्ध रहते हैं, जिन्हें पूरे देश में पढ़ाई और काम की स्वतंत्रता है। दलाई लामा को भारत में भी काफी सम्मान दिया जाता है। 

2. अमेरिका के लिए
अमेरिका के लिए भी तिब्बती धर्मगुरु के चयन का मुद्दा काफी अहम है। कहा जाता है कि दूसरे विश्व युद्ध के अंत के बाद जब शीत युद्ध अपने शुरुआती चरण में था, तब अमेरिका की विदेश मामलों की खुफिया एजेंसी- सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी (सीआईए) ने चीनी कब्जे के खिलाफ तिब्बत के प्रतिरोध में सहायता की थी। दलाई लामा के तिब्बत छोड़ने और भारत में बसने के बावजूद अमेरिका ने निर्वासित तिब्बती सरकार की मदद नहीं छोड़ी है।

अमेरिका में तिब्बती बौद्धों की धार्मिक स्वायत्तता को लेकर डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन पार्टी दोनों ही मुखर रही हैं। इतना ही नहीं अमेरिकी सरकार अगले दलाई लामा के चयन में चीन के दखल को भी अमान्य करार देती आई है। इसका एक उदाहरण 2015 में देखने को मिला था, जब चीन ने अगले दलाई लामा को चुनने के लिए अधिकार होने की बात कही थी। तब अमेरिकी अधिकारियों ने सार्वजनिक तौर पर इसे नकारा था और कहा था कि तिब्बती बौद्ध खुद इसका फैसला कर सकते हैं।

अमेरिका की तरफ से तिब्बती बौद्धों और दलाई लामा के समर्थन में सबसे बड़ा फैसला 2020 में आया, जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ने तिब्बत नीति और समर्थन कानून (टीपीएसए) को संसद से पारित करवाया था। अपने इस कदम से अमेरिका ने यह तय कर दिया कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी तिब्बत के बौद्धों द्वारा ही चुना जाएगा और इस मामले में चीन के अधिकारियों के दखल को मान्यता नहीं मिलेगी।

Bharat Baani Bureau

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