नई दिल्ली 04 जुलाई 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एचडीएफसी बैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक शशिधर जगदीशन की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें उन्होंने लीलावती कीर्तिलाल मेहता मेडिकल ट्रस्ट की शिकायत पर उनके खिलाफ दर्ज धोखाधड़ी और जालसाजी की प्राथमिकी को चुनौती दी है। लीलावती कीर्तिलाल मेहता मेडिकल ट्रस्ट मुंबई में प्रसिद्ध लीलावती अस्पताल का संचालन करता है।
न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि यह मामला पहले ही 14 जुलाई को बंबई उच्च न्यायालय में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है। अदालत ने कहा, “हम इस मामले पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं हैं। हम इसके गुण-दोष पर विचार नहीं करेंगे। यदि 14 तारीख को मामले की सुनवाई नहीं होती है, तो आप वापस आ जाइए।”
पीठ ने कहा, “हमें उम्मीद और विश्वास है कि उच्च न्यायालय निर्धारित तिथि पर मामले की सुनवाई करेगा।” जगदीशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि बैंक को एक निजी विवाद में घसीटा गया है। उन्होंने कहा, “एमडी को पुलिस थाने में बुलाकर पूछताछ की कोशिश हो रही है। एमडी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जानी चाहिए।”
रोहतगी ने कहा कि उन्होंने बम्बई उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था लेकिन उच्च न्यायालय की तीन पीठों ने अब तक मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है। ट्रस्ट द्वारा दर्ज शिकायत के अनुसार, जगदीशन ने ट्रस्ट के प्रशासन पर अवैध और अनुचित नियंत्रण बनाए रखने में चेतन मेहता समूह की मदद करने के लिए वित्तीय सलाह देने के बदले में कथित तौर पर 2.05 करोड़ रुपये की रिश्वत स्वीकार की।
ट्रस्ट ने जगदीशन पर एक प्रमुख निजी बैंक के प्रमुख के रूप में अपने पद का दुरुपयोग कर एक धर्मार्थ संगठन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया है। प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) को रद्द करने की मांग वाली जगदीशन की याचिका पहली बार जून में उच्च न्यायालय में सूचीबद्ध की गई थी।
ट्रस्ट द्वारा प्रस्तुत आवेदन के आधार पर, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 175 (3) के तहत बांद्रा मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश के बाद बांद्रा पुलिस स्टेशन में जगदीशन के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। उन पर एक लोक सेवक द्वारा धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात के कथित आरोपों के तहत मामला दर्ज किया गया था।
इस महीने की शुरुआत में जारी एक सार्वजनिक बयान में ट्रस्ट ने आरोप लगाया कि 2.05 करोड़ रुपये का भुगतान ट्रस्ट को “लूटने” और चेतन मेहता समूह के पक्ष में इसकी निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में हेरफेर करने की एक बड़ी साजिश का हिस्सा था। ट्रस्ट ने इस मामले की केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय में याचिका भी दायर की है।