22 अगस्त 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बिहार में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया के लिए एक बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने या सुधार के लिए आधार कार्ड को भी 11 अन्य डॉक्यूमेंट्स के साथ मान्य डॉक्यूमेंट के रूप में स्वीकार करे। यह फैसला बिहार में वोटर लिस्ट के संशोधन को लेकर दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान आया, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि इस प्रक्रिया में मनमाने तरीके से वोटरों के नाम हटाए जा रहे हैं, जिससे हजारों लोगों के वोटिंग अधिकार खतरे में पड़ सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश 24 जून को चुनाव आयोग द्वारा जारी एक निर्देश के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिया। इन याचिकाओं में कहा गया था कि बिहार में वोटर लिस्ट के लिए चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन में पर्याप्त सुरक्षा उपायों का अभाव है, जिसके चलते कई लोगों को वोट देने के अधिकार से वंचित किया जा सकता है। याचिकाकर्ताओं ने इस प्रक्रिया को लोकतांत्रिक और निष्पक्ष चुनाव के लिए खतरा बताया था।
चुनाव आयोग ने दी अपनी दलील
चुनाव आयोग ने अपनी सफाई में कहा कि बिहार में वोटर लिस्ट को अपडेट करने के लिए यह प्रक्रिया जरूरी है। आयोग ने बताया कि बिहार में पिछले करीब दो दशकों से वोटर लिस्ट का गहन संशोधन नहीं हुआ है। शहरीकरण, जनसंख्या में बदलाव और लोगों के पलायन जैसे कारणों से वोटर लिस्ट में कई गड़बड़ियां आ गई हैं। आयोग ने कहा कि यह प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 324 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के सेक्शन 21(3) के तहत उनके अधिकार क्षेत्र में आती है। आयोग का कहना है कि बिहार में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव से पहले यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि वोटर लिस्ट में केवल योग्य नागरिकों के नाम ही शामिल हों।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में पहले 10 अगस्त को भी चुनाव आयोग को सुझाव दिया था कि वह आधार कार्ड, राशन कार्ड और इलेक्टोरल फोटो आइडेंटिटी कार्ड (EPIC) जैसे डॉक्यूमेंट्स को वोटर लिस्ट के लिए स्वीकार करे। हालांकि, आयोग ने बाद में एक हलफनामा दायर कर कहा था कि आधार कार्ड और राशन कार्ड को वोटर पात्रता के लिए सबूत के रूप में नहीं लिया जा सकता। लेकिन अब कोर्ट के ताजा आदेश ने इस स्थिति को बदल दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान राजनीतिक दलों की निष्क्रियता पर भी नाराजगी जताई। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि बिहार में 12 राजनीतिक दलों को अपने कार्यकर्ताओं को निर्देश देना चाहिए कि वे लोगों की मदद करें और फॉर्म 6 के साथ 11 डॉक्यूमेंट्स या आधार कार्ड के जरिए शिकायतें दर्ज करवाएं। कोर्ट ने यह भी कहा कि बिहार में 1.68 लाख बूथ-स्तरीय एजेंट (BLA) होने के बावजूद केवल दो शिकायतें ही अब तक दर्ज हुई हैं, जो हैरान करने वाला है। कोर्ट ने राजनीतिक दलों से पूछा कि उनके कार्यकर्ता आखिर कर क्या रहे हैं और लोगों से उनकी दूरी क्यों है। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि सभी दलों के BLA यह जांच करें कि वोटर लिस्ट से हटाए गए 65 लाख लोगों में से कौन मृत है, कौन स्वेच्छा से दूसरी जगह चला गया है और कौन अभी भी वोटर लिस्ट में शामिल होने का हकदार है।
यह फैसला बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों से पहले वोटर लिस्ट को और पारदर्शी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।