26 सितंबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के तुर्की दूत टॉम बराक के बयान ने अरब दुनिया में भूचाल ला दिया है. उन्होंने कहा कि ‘मिडिल ईस्ट नाम की कोई जगह नहीं है, वहां बस कबीलों और गांवों का जमावड़ा है.’ बराक इस वक्त अमेरिका के सीरिया के लिए विशेष दूत भी हैं और उनका यह बयान उस समय आया है जब ट्रंप प्रशासन इस क्षेत्र में इजरायल–सीरिया शांति वार्ता और गाजा युद्ध खत्म करने की कोशिशों में जुटा है.

‘मिडिल ईस्ट’ सिर्फ नक्शे की रेखाएं?

सऊदी मीडिया Asharq News को दिए इंटरव्यू में बराक ने कहा कि यूरोप के नेताओं ने 1916 के साइक्स-पिको समझौते के जरिए ओटोमन साम्राज्य को तोड़कर कृत्रिम राष्ट्र–राज्य बना दिए. उन्होंने कहा कि यह सोचना गलत है कि 100 से ज्यादा जातीय समूहों वाले इस इलाके में कभी एक जैसी राजनीतिक समझदारी हो सकती है. बराक के अनुसार यहां की असल जिंदगी राष्ट्र–राज्य पर नहीं, बल्कि व्यक्ति से शुरू होकर परिवार, गांव, कबीले, फिर धर्म और आखिर में राष्ट्र तक पहुंचती है. इसीलिए यूरोप की तरह राष्ट्रवाद यहां कभी काम नहीं कर सकता.

साइक्स-पिको पैक्ट क्या था?
1916 में ब्रिटेन और फ्रांस ने, रूस और इटली की सहमति से, गुप्त समझौता किया जिसे साइक्स-पिको पैक्ट कहा जाता है. इसके तहत ओटोमन साम्राज्य को टुकड़ों में बांटकर उनके हिस्से बांट दिए गए. नक्शे पर खींची गई सीधी रेखाओं ने कई जातीय समुदायों को अलग-अलग देशों में बांट दिया.

सबसे बड़ा उदाहरण कुर्द समुदाय है, जिन्हें इराक, ईरान, सीरिया और तुर्की में बांट दिया गया. नतीजा यह हुआ कि दशकों तक विद्रोह और हिंसा का सिलसिला चला. इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन ने कुर्दों पर रासायनिक हमले तक किए. माना जाता है कि उसने लाखों कुर्दों को मौत के घाट उतारा.

बराक के बयान का बड़ा असर

बराक का यह बयान ऐसे वक्त पर आया है जब ट्रंप एक बार फिर अब्राहम अकॉर्ड्स को आगे बढ़ाने और अरब देशों को इजरायल से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसे में अरब दुनिया में यह कहना कि ‘मिडिल ईस्ट नाम की कोई जगह नहीं’ राजनीतिक भूगोल की पूरी नींव को चुनौती देने जैसा है. कई विद्वान बराक की बात से सहमत भी हैं. उनका कहना है कि कृत्रिम सीमाओं और जातीय असंतुलन ने ही इस क्षेत्र को बारूद का ढेर बना रखा है. इराक, लेबनान और जॉर्डन जैसे देशों में लगातार अस्थिरता इसी का नतीजा है.

लेकिन क्या सिर्फ साइक्स-पिको जिम्मेदार?

कई विशेषज्ञ इस सोच को ओवरसिंप्लिफिकेशन बताते हैं. उनका कहना है कि सिर्फ ब्रिटिश और फ्रेंच को दोष देना आसान है, लेकिन असली गुनाहगार वे स्थानीय शासक भी हैं जिन्होंने सत्ता के लिए जातीय विविधता को कुचल डाला. हुसैन हो या असद खानदान, दोनों ने अपने ही लोगों पर कहर बरपाया.

बराक का बयान अरब नेताओं के लिए कड़वा सच भी है और एक अपमान भी. दशकों से ‘मिडिल ईस्ट’ नाम का राजनीतिक नक्शा दुनिया के सामने एक यूनिट की तरह पेश किया गया, लेकिन अब उसी की वैधता पर सवाल उठ रहे हैं.

Bharat Baani Bureau

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