नई दिल्ली 05 दिसंबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) . विशाखापट्टनम के मैदान पर अफरा तफरी, भारतीय तेज गेंदबाजों के साथ कभी बॉलिंग कोच तो कभी विराट कोहली बात करते नजर आए जो इस बात की तरफ इशारा है कि मजबूरी कैसे इंसान को मजबूर करती है. दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सीरीज के शुरू होने के साथ भारतीय क्रिकेट टीम की सिलेक्शन पॉलिटिक्स लगातार सुर्खियों में है और इस बार मामला सिर्फ खराब फॉर्म या इंजरी का नहीं, बल्कि बैकअप की पूरी तरह गैर मौजूदगी का है.
दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ कड़क सीरीज में जीत और हार के बीच में एक मैच बचा है, लेकिन टीम इंडिया के पास तेज गेंदबाजी में कोई ठोस प्लान-B तक नहीं, प्रसिद्ध कृष्णा और हर्षित राणा ने दोनों मैच में रन लुटाए और आराम से पवेलियन लौट आए क्योंकि उनको पता है टीम में उनका कोई विकल्प नहीं है पर फिर भी मजबूरी में उन्हें खिलाना पड़ रहा है.
सवाल ये नहीं कि कौन खेल रहा है सवाल ये है कि कौन नहीं चुना जा रहा और क्यों? चर्चाओं में तड़का तब और लग जाता है जब आरोप लगते हैं कि चीफ सेलेक्टर अजीत अगरकर और गौतम गंभीर की ‘मिलीभगत’ के कारण टीम सिलेक्शन एक बंद कमरे का खेल बन चुका है. धीरे-धीरे पूरे सिस्टम की परतें खुल रही हैं एक्सपोजर शुरू है और तापमान बढ़ रहा है.
बॉलर का 0 बैकअप क्यों?
दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ हालात इतने नाजुक हो चुके हैं कि अगर विशाखापत्तनम में भारत हार गया तो न सिर्फ सीरीज जाएगी, बल्कि बीसीसीआई के गलियारों में हड़कंप मचना तय है. फैंस पूछ रहे हैं. तेज गेंदबाजों के बैकअप के तौर पर गेंदबाज क्यों नहीं चुने गए. टीम में तीन-तीन विकेटकीपर की आखिर क्या जरूरत? दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ यह सीरीज सिर्फ क्रिकेट नहीं, यह सिलेक्शन की सच्चाई, सिस्टम की दरारें और अंदरूनी खींचतान की सबसे बड़ी परीक्षा बनने जा रही है. टीम में चुने गए तीन तेज गेंदबाज और तीनों प्लेइंग एलेवन में जिसमें प्रसिद्ध कृष्ण और हर्षित राणा कब रन का फ्लड गेंद खोल दे पता नहीं. टीम के पास ऑप्शन नहीं है और मजबूरी में इसी तिकड़ी के साथ सीरीज के अंतिम मुकाबले में उतरना पड़ेगा.
विकल्प हैं तो क्यों नहीं होता चयन?
भारतीय क्रिकेट में विकल्पों की कमी नहीं है पर टीम में सिर्फ तीन तेज गेंदबाजों का होना हर किसी के मन में सवाल पैदा कर रहा है. अब यह मजबूरी है या चयनकर्ताओं की बड़ी ग़लती यह सवाल लगातार गूंज रहा है. इसके बीच सबसे बड़ा विवाद खड़ा हुआ है चीफ सेलेक्टर अजीत अगरकर और गौतम गंभीर की कथित ‘सिलेक्शन पार्टनरशिप’ को लेकर, जिस पर क्रिकेट फैंस और एक्सपर्ट्स दोनों की निगाहें टिक गई हैं. आरोप साफ हैं चयन की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं, पावर सर्कल सिर्फ कुछ नामों के इर्द-गिर्द घूम रहा है और योग्य खिलाड़ियों का रास्ता बार-बार रोका जा रहा है. धीरे-धीरे टीम के अंदरूनी समीकरणों की परतें खुल रही हैं और यह साफ नजर आता है कि मामला सिर्फ क्रिकेट का नहीं पॉलिटिक्स, लॉबिंग और इंटरेस्ट्स की लड़ाई कहीं ज्यादा गहरी हो चुकी है.
