चंडीगढ़, 11 दिसंबर 2025 (भारत बानी ब्यूरो) : पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण दखल देते हुए पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ को निर्देश दिया है कि वह भारतीय मूल की एक कनाडाई पासपोर्ट धारक छात्रा को बी.कॉम-एलएल.बी के पांच वर्षीय कोर्स में दाखिला दे। उसे इस वर्ष एनआरआई कोटे में अंतिम चयनित उम्मीदवार से कहीं अधिक अंक हासिल करने के बावजूद भी सीट नहीं मिली थी। अदालत ने माना कि विश्वविद्यालय की नीति ने छात्रा को अनुचित नुकसान पहुंचाया और न्यायिक हस्तक्षेप आवश्यक था।
याचिकाकर्ता एकनूर कौर बैंस का जन्म कनाडा में पंजाबी माता-पिता के घर हुआ था जो एक वर्ष के भीतर भारत लौट आए थे। एकनूर ने कक्षा पहली से बारहवीं तक की पढ़ाई चंडीगढ़ में की लेकिन उसका कनाडाई पासपोर्ट बना रहा। उसने पंजाब विश्वविद्यालय में मेरिट के आधार पर प्रवेश के लिए आवेदन किया था। उसके 99 अंकों के आधार पर उसकी रैंक एनआरआई कोटे में कई उम्मीदवारों से ऊपर होनी चाहिए थी जहां अंतिम प्रवेश पाने वाले छात्र के अंक 64.8 थे। इसके बजाय विश्वविद्यालय ने उसे विदेशी नागरिक श्रेणी में रखकर श्रृंखला में 27वें नंबर पर डाल दिया जो सभी एनआरआई उम्मीदवारों से नीचे था।
अदालत में उसके वकील गगन परदीप सिंह बल ने दलील दी कि विश्वविद्यालय की प्रवेश नीति मनमानी है, इस वर्ष इसे बदला गया है और इसके चलते एक योग्य उम्मीदवार को अनुचित रूप से दरकिनार किया गया। अदालत ने माना कि यह मुद्दा विचार योग्य है और छात्रा की उच्च मेरिट और भारतीय मूल की पृष्ठभूमि को देखते हुए विश्वविद्यालय का पक्ष टिकाऊ नहीं है।
उसके वकील द्वारा रखे गए विशेष तथ्यों और परिस्थितियों पर ध्यान देते हुए न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति रोहित कपूर की खंडपीठ ने विश्वविद्यालय को तुरंत उसे प्रवेश देने और कक्षाओं में शामिल होने की अनुमति देने का निर्देश दिया। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि यदि सभी सीटें भर चुकी हैं तो विश्वविद्यालय को उसके लिए एक अतिरिक्त सीट बनानी होगी। यह आदेश याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन रहेगा। अदालत ने स्पष्ट किया कि अंतरिम राहत को भविष्य के मामलों में मिसाल की तरह इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।
