पेरिस 02 सितम्बर 2024 . कहते हैं हमारी किस्मत हमारे हाथ में होती है और मुश्किलों से हार ना मानने वालों के लिए कोई बाधा बड़ी नहीं होती. भारतीय पैरा एथलीट नितेश कुमार ने इस बात को सच कर दिखाया है. भले ही यह खिलाड़ी पैरालंपिक में सफलता हासिल करने के शिखर पर खड़ा हो लेकिन एक समय ऐसा भी था जब वह महीनों तक बिस्तर पर पड़े रहे थे. उनका हौसला टूटा हुआ था फिर जो हुआ वो उससे पूरी दुनिया वाकिफ है. नितेश पेरिस पैरालंपिक में गोल्ड मेडल जीतने से एक कदम दूर हैं.

नितेश जब 15 साल के थे तब उनकी जिंदगी में दुखद मोड़ आया और 2009 में विशाखापत्तनम में एक ट्रेन दुर्घटना में उन्होंने अपना पैर खो दिया. बिस्तर पर पड़े रहने के कारण वह काफी निराशा हो चुके थे. उन्होंने याद करते हुए कहा, ‘‘मेरा बचपन थोड़ा अलग रहा है. मैं फुटबॉल खेलता था और फिर यह दुर्घटना हो गई. मुझे हमेशा के लिए खेल छोड़ना पड़ा और पढ़ाई में लग गया लेकिन खेल फिर मेरी जिंदगी में वापस आ गए.’’

बैडमिंटन एसएल3 फाइनल में पहुंच चुके नितेश को आईआईटी-मंडी में पढ़ाई के दौरान उन्हें बैडमिंटन की जानकारी मिली और फिर यह खेल उनकी ताकत का स्रोत बन गया. साथी पैरा शटलर प्रमोद भगत की विनम्रता और स्टार क्रिकेटर विराट कोहली से प्रेरणा लेकर नितेश ने अपने जीवन को फिर से संवारना शुरू कर दिया.

उन्होन कहा, ‘‘प्रमोद भैया (प्रमोद भगत) मेरे प्रेरणास्रोत रहे हैं। इसलिए नहीं कि वे कितने कुशल और अनुभवी हैं बल्कि इसलिए भी कि वे एक इंसान के तौर पर कितने विनम्र हैं. विराट कोहली ने जिस तरह से खुद को एक फिट एथलीट में बदला है, मैं इसलिए उनकी प्रशंसा करता हूं. अब वह इतने फिट और अनुशासित हैं.’’

नौसेना अधिकारी के बेटे नितेश ने कभी वर्दी पहनने की ख्वाहिश की थी. उन्होंने कहा, ‘‘मैं वर्दी का दीवाना था. मैं अपने पिता को उनकी वर्दी में देखता था और मैं या तो खेल में या सेना या नौसेना जैसी नौकरी में रहना चाहता था.’’
लेकिन दुर्घटना ने उन सपनों को चकनाचूर कर दिया. पर पुणे में कृत्रिम अंग केंद्र की यात्रा ने नितेश का दृष्टिकोण बदल दिया.

Bharat Baani Bureau

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