07 अप्रैल 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) – दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी बंगले में हाल ही में लगी आग और वहां से कथित तौर पर जली हुई नकदी मिलने की घटना ने न्यायपालिका में पारदर्शिता को लेकर बहस को फिर से हवा दे दी है. 14 मार्च को उनके सरकारी आवास के स्टोर रूम में आग लगने के बाद राहत और बचाव दल को मलबे में अधजली करेंसी नोट्स मिले थे. इस घटना ने उच्च न्यायपालिका में जजों की संपत्ति और देनदारियों की घोषणा न करने की प्रवृत्ति को एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है.

खबर है कि देश की 25 हाईकोर्ट में कार्यरत 769 जजों में से महज 95 यानी केवल 12.35 फीसदी ने ही अपनी संपत्ति और देनदारियों का विवरण अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर सार्वजनिक किया है. द हिन्दू की खबर के मुताबिक, कुछ हाईकोर्ट जैसे केरल के 44 में 41 जजों ने और हिमाचल प्रदेश के 12 में से 11 जजों ने पारदर्शिता की मिसाल पेश की है, जबकि छत्तीसगढ़ और मद्रास हाईकोर्ट की स्थिति चिंताजनक है. छत्तीसगढ़ के कुल 16 जजों में से केवल 1 और मद्रास हाईकोर्ट के 65 में से 5 में स्थिति चिंताजनक है.

वहीं दिल्ली हाईकोर्ट की बात करें तो 2018 में जहां 29 जजों ने अपनी संपत्ति घोषित की थी, जबकि वर्तमान में केवल 7 जजों ने अपनी संपत्ति घोषित की है.

सुप्रीम कोर्ट ने दिखाया रास्ता
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना सहित 33 में से 30 जजों ने पहले ही अपनी संपत्ति की घोषणा कर दी है. 1 अप्रैल को हुई फुल कोर्ट मीटिंग में सभी 33 जजों ने इस जानकारी को सार्वजनिक रूप से वेबसाइट पर अपलोड करने पर सहमति जताई है.

संसदीय समिति ने भी जताई थी चिंता
इससे पहले अगस्त 2023 में संसद की स्थायी समिति ने ‘न्यायिक प्रक्रियाएं और उनका सुधार’ शीर्षक से एक रिपोर्ट पेश कर यह सिफारिश की थी कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के सभी न्यायाधीशों के लिए वार्षिक संपत्ति घोषणा अनिवार्य की जानी चाहिए. रिपोर्ट में कहा गया था, ‘जब सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया है कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की संपत्ति की जानकारी जनता को जानने का अधिकार है, तो फिर यह तर्कहीन है कि न्यायाधीशों को इससे छूट मिले.’

सारांश:
एक रिपोर्ट के अनुसार, देश के हाईकोर्ट्स में 88% जजों ने न्यायिक मर्यादा का उल्लंघन किया है। केवल जस्टिस यशवंत वर्मा ने मर्यादा का पालन किया। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट की स्थिति सबसे खराब बताई गई है। यह सवाल खड़ा करता है कि जब न्यायपालिका ही नियम तोड़े, तो जनता न्याय की उम्मीद किससे करे?

Bharat Baani Bureau

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