21 फरवरी 2025 (भारत बानी ब्यूरो ) – हमारी आंतों में करोड़ों बैक्टीरिया और अन्य सूक्ष्म जीव होते हैं, जिन्हें मिलाकर माइक्रोबायोम बन जाता है. ये जीव हमारे पाचन तंत्र में रहते हैं और हमारे स्वास्थ्य पर सीधा असर डालते हैं. आंतों में गुड बैक्टीरिया बढ़ जाते हैं, तो सेहत में सुधार हो जाता है और बैड बैक्टीरिया बढ़ने पर समस्याएं पैदा होने लगती हैं. एक नई रिसर्च में पता चला है कि गट माइक्रोबायोम यानी आंतों में मौजूद सूक्ष्म जीव ब्रेन की खतरनाक बीमारी मल्टीपल स्क्लेरोसिस (MS) को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. आइए जानते हैं कि इस रिसर्च में कौन सी बड़ी बातें सामने आई हैं.

अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने स्टडी में पाया कि मल्टीपल स्क्लेरोसिस के मरीजों की आंत में कुछ खास तरह के बैक्टीरिया की मात्रा सामान्य लोगों की तुलना में अलग होती है. इन मरीजों में इम्युनोग्लोबुलिन ए (आईजीए) नामक एंटीबॉडी से ढके बैक्टीरिया की संख्या भी कम होती है. रिसर्च की मुख्य वैज्ञानिक एरिन लॉन्गब्रेक के अनुसार, जब मल्टीपल स्क्लेरोसिस डिजीज के मरीजों में आईजीए से ढके बैक्टीरिया कम होते हैं, तो यह दर्शाता है कि उनके शरीर और आंत के जीवों के बीच संतुलन बिगड़ गया है. संभव है कि पर्यावरणीय कारणों से आंत के बैक्टीरिया में बदलाव होता है, जिससे इस बीमारी के होने का खतरा बढ़ जाता है. यह अध्ययन “न्यूरोलॉजी न्यूरोइम्यूनोलॉजी एंड न्यूरोइन्फ्लेमेशन” पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.

एक्सपर्ट्स के अनुसार मल्टीपल स्केलेरोसिस एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जो हमारे नर्वस सिस्टम को प्रभावित करती है. इसमें शरीर का इम्यून सिस्टम अपनी ही नसों की सुरक्षा करने वाली परत मायलिन को नुकसान पहुंचाता है. मायलिन परत नसों के चारों ओर एक सुरक्षा कवच की तरह काम करती है, जो ब्रेन से शरीर के अन्य अंगों को मैसेज जल्दी और सही तरीके से भेजने में मदद करती है. जब यह परत कमजोर हो जाती है, तो दिमाग और शरीर के अन्य हिस्सों के बीच संदेशों का आदान-प्रदान धीमा हो जाता है या रुक जाता है. इससे शरीर के विभिन्न हिस्सों में कमजोरी, सुन्नापन, विजन में समस्या और संतुलन की समस्या हो सकती है. यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है, लेकिन आमतौर पर 20 से 40 साल के बीच के लोगों को प्रभावित करती है.

नई रिसर्च में 43 ऐसे लोगों को शामिल किया गया था, जिन्हें हाल ही में यह बीमारी हुई थी और अभी तक कोई इलाज शुरू नहीं किया था. इनकी तुलना 42 स्वस्थ लोगों से की गई. उनके मल के नमूनों की जांच से पता चला कि मल्टीपल स्केलेरोसिस के मरीजों में ‘फीकलिबैक्टीरियम’ नामक बैक्टीरिया कम थे, जबकि बिना इलाज वाले एमएस मरीजों में ‘मोनोग्लोबस’ नामक बैक्टीरिया ज्यादा थे. इन 43 मरीजों में से 19 को “बी-सेल डिप्लीशन थेरेपी” नामक इलाज दिया गया, जिससे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली की उन कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है, जो ऑटोइम्यून बीमारियों को बढ़ाती हैं. इलाज के 6 महीने बाद जब दोबारा इनके मल के नमूने लिए गए, तो इनके गट माइक्रोबायोम स्वस्थ लोगों की तरह हो गए. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस अध्ययन से यह समझने में मदद मिलती है कि यह दवा एमएस के इलाज में कैसे काम करती है. इसके जरिए यह भी जाना जा सकता है कि कुछ लोगों को एमएस क्यों होता है.

सारांश: वैज्ञानिकों की नई रिसर्च में बड़ा खुलासा! गट हेल्थ और दिमागी बीमारी के बीच गहरा कनेक्शन पाया गया, जानिए कैसे पाचन तंत्र आपके ब्रेन को प्रभावित कर सकता है।

Bharat Baani Bureau

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